Rohtak., March 28 2015: RSS Sarasanhghachalak Mohan Bhagwat said “Nation has a great legacy, we are proud of this this great legacy. Nation should be more stronger (shaktishali), for the prosperity of the universe”.
Mohan Bhagwat was addressing a mega youth conclave TARUNODAY at Rohtak, in Haryana,
रोहतक . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन जी भागवत ने कहा कि भारत की गौरवशाली परंपरा रही है, इसी गौरवशाली परंपरा के कारण ही आज भारत का बड़ा और शक्तिशाली होना विश्व की जरूरत है. सरसंघचालक हरियाणा के रोहतक में तरुणोदय 2015 में शिविरार्थियों को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर के कारण ही हम अनेक कालचक्रों का सामना करते हुए टिके रहे, इसका कारण हमारी महान सांस्कृतिक परंपरा है. हमने कभी किसी संस्कृति को नहीं नकारा. हमारी समन्वयवादी परंपरा रही है. इसीलिए सभी क्षेत्रों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं. ज्ञान-विज्ञान का प्रारंभ करने का श्रेय भारत को जाता है. खेती हो, विज्ञान हो या आध्यात्म, हम हर क्षेत्र में आगे रहे हैं. चाहे बात लौह स्तंभ की हो या स्टेनलेस स्टील बनाने की. हमारे वनवासी बंधुओं द्वारा बनाया जाने वाला स्टेनलेस स्टील उच्चकोटि का है, जिसका लोहा बड़ी-बड़ी कंपनियां भी मानती हैं. हमने विश्व को ज्ञान दिया. इतना ही नहीं ज्ञान को विश्व में हर किसी तक पहुंचाने के लिए बलिदान देने से भी भारत के लोग पीछे नहीं रहे.
उन्होंने बताया कि जब चीनी यात्री नालंदा विश्वविद्यालय से पुस्तकें लेकर चीन लौट रहा था तो नाव द्वारा नदी पार करते समय तूफान आने पर नाविक ने कहा कि तूफान में डटे रहने के लिये नाव से कुछ भार कम करना पड़ेगा. तब चीनी यात्री चिंतित हो गया, कि अब भार कम करने के लिये पुस्तकें फैंकनी पड़ेंगी या किसी को नदीं में कूदना होगा. ज्ञान की धारा को चीन तक पहुंचाने के लिये उनके साथ जा रहे तीन भारतीयों ने चीनी यात्री की चिंता को कम किया, और तीनों भारतीयों ने जान की परवाह किए बिना बारी-बारी से नदी में छलांग लगा दी ताकि ज्ञान की धारा चीन तक पहुंच सके.
उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा धर्म आधारित अर्थ, काम और मोक्ष की परंपरा रही है. इसी महान सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आगे बढ़ाने व इसके प्रति देश के लोगों में गौरवानुभूति जागृत करने का कार्य कर रहा है. तरुणोदय शिविर में हम सब इसलिए एकत्र हुए हैं, क्योंकि हम सबके मन में भारत को परम वैभव पर ले जाने का सपना है. यह सपना तब पूरा होगा, जब हम सबसे पहले अपने भारत को जानें. किसी भी देश को समझने के लिये उसे केवल भौगोलिक दृष्टि से समझना पर्याप्त नहीं होता, अपितु उसकी अस्मिता के मूल स्रोत और उसकी वैज्ञानिक दृष्टि, सांस्कृतिक मूल्य और उज्ज्वल परंपरा को जानना और देश के जनमानस की भावनाओं को समझना जरूरी होता है.
संघ के स्वयंसेवकों के सामने अनेक बाधाएं और उतार-चढ़ाव आएंगे. झोंकों और बाधाओं के कारण हम अपनी राह नहीं छोड़ेंगे, हमें देश के लिए काम करना है और भारत को विश्वगुरु बनाना है, इस सबके लिए हम सब काम कर रहे हैं. इसी परंपरा में हमारा हर कार्य सत्यं, शिवम्, सुदरम् होना चाहिये. निजी स्वार्थ के चलते संघ में आने वाले व्यक्ति ज्यादा दिन संगठन में नहीं टिकते.
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति का परिचय कराने के लिए यहां पर 15 सेकेंड लगे हैं. भारत में 125 करोड़ जन हैं, इस हिसाब से भारत माता का परिचय कराने के लिये कितना समय लगेगा, यह जानना जरूरी है. भारत को जाने बिना इसके लिए काम कैसे होगा. इसलिए यह आवश्यक है कि देश के लिये कार्य करने से पहले भारत को जानें. जाति व्यवस्था व महिलाओं का गौण स्थान भारत की परंपरा नहीं है. महिलाओ का उच्च स्थान व जाति विहीन समाज की संरचना भारत में सदियों से रही है. अर्थशास्त्र न मुनाफा कमाने का तंत्र है और न ही उपभोग को बढ़ावा देने का, बल्कि सभी का भरण पोषण हो, इसके लिए है. उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक रूप से हम सब एकसूत्र में बंधे हुए हैं, जिसमें जाति का कहीं कोई स्थान नहीं है.